थकान
मृगतृष्णा सा हाल है, मन में खुशबू लिए और खुश्बू खोजे वीराने में,
जो मज़ा बिखरने में है, वो कहां अब संभल जाने में,
फेक बिखरा अपना सब कुछ, यूं ही बेवजह एक वजह के लिए ,
फुर्सत के सिके भी नही है अब जेबो में मेरी रिहायी के लिए,
यूं ही रातों की बातों में आकर जगा रखा है खुद को,
अब सपनो में भी सो लेने दो मुझको
अब रो लेने दो मुझको.
कोमल जामवाल.
🤌
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